एक नंबर और बचेगी लाखों की जान

एक नंबर और बचेगी लाखों की जान

आलोक मेहता

सचमुच जादुई बात लगती है। आपके पास एक निश्चित नंबर वाला छोटा सा पुर्जा हो और आप अपनी या अपने परिजन की जान जल्दी से जल्दी बचाने का इंतजाम कर लें। अभी नंबर वाले कागज न होने से कोरोना के बजाय अन्य बीमारियों से अनेक लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी। यही नहीं कितने ही लोग दिल्ली या मुंबई में 25 से 50 लाख रुपयों के खर्च से पांच सितारा अस्पताल में ऑपरेशन और इलाज के बाद किसी अन्य शहर या विदेश में जाकर बीमार हो जाएँ तो समुचित रिकॉर्ड नहीं होने से दुगुने खर्च के बावजूद स्वास्थय के नए संकट का सामना नहीं कर पाए। इस तरह की स्थितियों से रक्षा के लिए हाल ही में प्रधान मंत्री द्वारा घोषित राष्ट्रीय स्वास्थ्य पहचान पत्र योजना के सही ढंग से क्रियान्वित होने पर भारत में सामाजिक स्वास्थ्य की नई क्रांति हो सकेगी।

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अच्छी बात यह है कि यह घोषणा केवल राजनीतिक वायदा या भाषणबाजी नहीं है। महीनों के उच्च स्तरीय विचार विमर्श तथा प्रारम्भिक तैयारियों के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर पर स्वतंत्रता की रक्षा के संकल्प के साथ की है। स्वतंत्रता और अखंडता की रक्षा केवल  किसी सरकार या सेना से नहीं, देश के सभी नागरिकों के सशक्त रहकर एकता तथा प्रगति से होती है। उनका स्वस्थ्य और शिक्षित होना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। कुछ हफ़्तों पहले सरकार ने नई शिक्षा नीति की घोषणा भी कर दी है। उस पर भी वर्षों तक सलाह मशविरा हुआ था। इसी तरह स्वास्थ्य डिजिटल पहचान पत्र के लिए लगभग दो वर्षों से राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के तहत विस्तृत विचार विमर्श हुआ है। पिछले वर्षों के दौरान भारत के श्रेश्ठतम डॉक्टरों ने दुनिया में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाई और दूसरी तरफ सरकारी आयुर्विज्ञान संस्थान के अलावा निजी क्षेत्र में भी अत्याधुनिक अस्पताल स्थापित हुए। इन्हे पांच सितारा अस्पताल भी कहा जाता है, क्योंकि बहुत सुविधा सम्पन्न होने से खर्च लाखों में होता है। लेकिन निजी हों या सरकारी , सबसे गंभीर समस्या रही है कि एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल जाने या देश विदेश में फिर स्वास्थ्य की समस्या आने पर व्यक्ति के पास केवल कुछ कागज और रिकार्ड होता है। निजी क्षेत्र में तो दुबारा टेस्ट एक्स रे आदि के लिए भी आदेश हो जाता है। हमारे देश में कई अच्छे नामी डॉक्टर रोगी से जिज्ञासा के लिए भी सवाल पूछने पर नाराज हो जाते हैं। उनके लिखे पर्चे को दूसरे डॉक्टर या केमिस्ट मुश्किल से पढ़ पाते हैं। अमीर हो या गरीब गंभीर स्वास्थ्य समस्या के दौरान थेले में पिछले आधे गले फ़टे रिकार्ड लिए दौड़ते रहते हैं। उत्तर प्रदेश के अस्पतालों की हालत और हिसाब किताब पर लगभग पांच वर्ष पहले सी ए जी की एक रिपोर्ट में इस बात पर ध्यान दिलाया गया था कि उन अस्पतालों में रोगियों की चिकित्सा तक का समुचित रिकार्ड नहीं मिलना अनुचित है। इसके बाद केंद्र सरकार ने  आयुष्मान भारत योजना के तहत लगभग दस करोड़ पचहत्तर लाख गरीब परिवारों को पांच लाख रुपयों का स्वास्थ्य  कवर उपलब्ध करने के लिए डिजिटल व्यवस्था की तैयारी  की। इसके आलावा 2022 तक डेढ़ लाख स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र स्थापित करने का कार्यक्रम बना है। वहीं टेलीमेडिसिन के प्रावधान और डॉयग्नोस्टिक लेबोरटरी सुविधाओं को उपलब्ध कराया जायेगा। कोरोना काल में ऐसी लेबोरटरी बनने का काम युद्ध स्तर पर भी हुआ है। देश के बड़े निजी अस्पताल मैक्स, अपोलो, फोर्टिज आदि ने चिकित्सा के डिजिटल रिकार्ड बनाने का काम पहले शरू किया हुआ है। लेकिन वे यह रिकार्ड अन्य अस्पतालों को नहीं देते हैं। प्रतियोगिता के साथ मरीजों को उन पर ही निर्भर रहने की मज़बूरी सी हो जाती है। इसलिए मोदी सरकार ने 2019 में नेशनल हेल्थ  ब्लूप्रिंट बनाकर सार्वजनिक किया ताकि उस पर अधिकाधिक राय - सुझाव सामने आ सके। इससे राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य सुरक्षा के कार्यक्रम बनाने में सुविधा हो रही है।

सरकार ने कुछ केंद्र शासित प्रदेशों में परिक्षण के तौर पर स्वास्थ्य पहचान पत्र के लिए काम शुरू कर दिया है। नेशनल डिजिटल हेल्थ इको सिस्टम के अंतर्गत हेल्थ मास्टर डायरेक्टरी एन्ड रजिस्ट्री बनेगी। वेब हेल्थ पोर्टल, मोबाइल के लिए माई हेल्थ एप, काल सेंटर, हेल्थ सूचना एक्सचेंज स्थापित होंगे | इस महत्वाकांक्षी योजना को लेकर अभी से निजता के अधिकार और गोपनीयता के सवाल उठने लगे हैं। आधार कार्ड की अनिवार्यता ही नहीं जन गणना को लेकर भी ऐसी आपत्तियां उठाई जा रही हैं। इसमें कोई शक नहीं कि निजता के अधिकार की रक्षा होनी चाहिए, लेकिन सरकार और भारत के विशेषज्ञ स्वयं यह सुनिश्चित करेंगे। केवल भ्रम फैलाकर और ऐसी क्रन्तिकारी योजना को क़ानूनी दांव पेंच में फंसाकर करोड़ों भारतियों के हितों को नुकसान पहुंच सकता है।

आज़ादी के 73 वर्षों में शिक्षा और स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं मिलने से देश के विभिन्न हिस्सों में सरकारी शैक्षिक तथा चिकित्सा के केंद्र दयनीय स्थिति में रहे हैं। संघीय व्यवस्था के कारण केंद्र और राज्य सरकारों ने अधिकतम बजट का प्रावधान नहीं किया। इसलिए नई योजना के क्रियान्वयन के लिए सरकारों को अधिकाधिक बजट का प्रावधान करना होगा। सरकारी अस्पताल की हालत ठीक होने पर निजी अस्पताल भी अधिक प्रतियोगी और आधुनिक उपकरणों की व्यवस्था करेंगे। राष्ट्रीय स्वास्थ्य पहचान पत्र होने पर आप सोचिए, सामान्य नागरिक को कितनी सुविधा हो जाएगी। उसके शरीर और स्वास्थ्य का रिकार्ड उस कार्ड के एक नंबर से देश के किसी भी हिस्से में देखा जा सकेगा। आप गांव में जन्मे हो या महानगर में अथवा नौकरी - काम धंधे से किसी उम्र में कहीं भी हों, कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या होने पर उस कार्ड के साथ जिस डॉक्टर और अस्पताल के पास पहुंचेंगे, उन्हें यह जानकारी मिल सकेगी कि कभी आपको मलेरिया बुखार, पेट - सांस - दिल या जिगर की कोई परेशानी हुई  या नहीं, हुई है तो किन दवाइयों से उपचार हुआ है। दुर्घटना की स्थिति में तो और भी आसानी होगी, क्योंकि आप बोलने की हालत में भी नहीं होते। इससे आपके जीवन की रक्षा करने के लिए तत्काल चिकित्सा के सभी उपाय किए जा सकेंगे। याद करें, जन धन योजना में खता खोलने और आधार कार्ड से जोड़ने पर एक वर्ग ने आपत्ति की थी, लेकिन कोरोना के महा संकट के दौरान बीस करोड़ परिवारों के खातों में तत्काल छोटी ही सही आवश्यक धनराशि मिल सकी। आयुष्मान भारत के तहत लाखों लोगों को लाभ मिल रहा है। हमारे देश में तो रेल, हवाई जहाज या चिकित्सा के लिए इंजेक्शन के विरुद्ध भी अनर्गल बातें समझाने वाले लोग रहे हैं। इसलिए हर पहचान पत्र पर भी डर दिखाया जाता है। यदि आप कोई अपराध नहीं कर रहे हैं तो करोड़ों लोगों के साथ आपकी सेहत का विवरण भी दर्ज हो जायेगा तो क्या कोई नुक्सान हो जायेगा? जो अति ज्ञानी लोग गरीब लोगों की निजता की बात करते हैं, वे अमेरिका, चीन, रूस, यूरोप या दुबई की यात्रा के वीसा के लिए पूरे खानदान का ब्योरा देने, हेल्थ चेक अप के सारे रिकार्ड देने में शान समझते हैं। बहरहाल अब भारत के गांव से शहर तक के गरीब कम शिक्षित लोग अपना और देश का भला बुरा समझने लगे हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य की नई क्रांति से देश का भविष्य अधिक सुरक्षित और खुशहाल हो सकेगा।

 

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